पराली जलाने के बढ़ते मामलों की वजह से विषैली हुई कई शहरों की हवा

किसान भाइयों जैसा कि आप जानते हैं वर्तमान में धान की कटाई का समय चल रहा है। दरअसल, प्रति वर्ष पंजाब एवं हरियाणा की सरकारें किसानों पर कड़ाई करने व पराली जलाने से रोकने की बात तो करती हैं। परंतु, वास्तविकता में किसान निरंतर पराली जलाने में जुटे हुए हैं। इसी कारण से पराली जलाने से जो प्रदूषण फैल रहा है, उसके कारण दिल्ली-एनसीआर का AQI यानी वायु गुणवत्ता सूचकाँक निरंतर खतरनाक स्तर की तरफ बढ़ रहा है। पंजाब और हरियाणा राज्य से विगत वर्षों की भांति इस वर्ष भी पराली का खतरा बढ़ना शुरू हो गया है। बतादें, दोनों राज्यों की सरकार की सख्ती के पश्चात भी किसान खुले मैदानों में पराली जलाते दिख रहे हैं। पराली जलने की वजह से उठने वाला धुंआ पंजाब, हरियाणा सहित दिल्ली-एनसीआर के लोगों की सांसों के लिए घातक साबित हो रहा है। दिल्ली-एनसीआर में CPCB द्वारा की गई मॉनिटरिंग में औसत AQI 263 रिपोर्ट हुआ है। इसकी वजह से लोगों के ऊपर गंभीर बीमारियों का खतरा मंडरा रहा है। पंजाब और हरियाणा राज्यों में निरंतर पराली को आग लगाई जा रही है। जैसे-जैसे धान की कटाई का सीजन आगे बढ़ रहा है, वैसे-वैसे पराली जलाने के मामले भी निरंतरता से बढ़ रहे हैं। पराली में आग लगाने से जो धुआं और प्रदूषण उत्पन्न हो रहा है, उसकी वजह से दिल्ली-एनसीआर सहित हरियाणा के भी बहुत सारे शहरों का AQI काफी खराब स्तर पर पहुंच चुका है।

पंजाब में बेखौफ पराली को आग के हवाले किया जा रहा है

पंजाब राज्य के अंदर भले ही पराली जलाने के मामले कम होने का दावा किया जा रहा हो, परंतु खुलेआम पराली जलाने का सिलसिला भी निरंतर जारी है। चंडीगढ़ के आसपास डेराबस्सी में हाईवे के किनारे ही सरेआम पराली जलती नजर आई। स्थिति आज यह है, कि यदि आप पंजाब एवं हरियाणा में किसी भी नेशनल हाईवे से गुजरते हैं, तो सड़क के किनारे जले हुए काले खेत नजर आऐंगे। जहां पर पराली पूर्णतय खाक में बदली नजर आएगी। किसान चालाकी से अपने खेत में पराली को आग लगा देते हैं और उसके पश्चात अपने खेतों से नौ दो ग्यारह हो जाते हैं, जिससे कि उन पर कोई कानूनी कार्यवाही ना हो सके।

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हरियाणा में जागरूक किसान पराली का उचित प्रबंधन कर रहे हैं

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि ऐसे किसान भी हैं, जो पराली को आग के हवाले ना करके उसका प्रबंधन करने में विश्वास रखते हैं। पंचकूला के नग्गल गांव में किसान सुपर सीडर मशीन के माध्यम से पराली को खेतों में ही खाद की भांति उपयोग करने एवं सीधे गेहूं के बीज की बुवाई करते नजर आए। इन किसानों का कहना है, कि जो किसान महंगी मशीनें खरीद सकते हैं, वो तो पराली का प्रबंधन कर लेता है। परंतु, लघु व सीमांत किसानों के पास पराली को आग लगाने के अतिरिक्त कोई रास्ता नहीं है।

किसानों को सरकार से क्या शिकायत है

पंचकूला के मनकइया गांव में कुछ किसान पारंपरिक ढ़ंग से धान की फसल की कटाई के उपरांत पराली के ढेर बना रहे हैं। परंतु, उन्हें भी शिकायत इस बात की है, कि वो मजदूर लगाकर पराली को जलाने की बजाय उसका प्रबंधन कर रहे हैं। परंतु, सरकार की ओर से उन्हें ना तो कोई सहायता मिली है और ना ही किसी प्रकार का कोई अनुदान दिया गया है। उन्हें अपने स्वयं के खर्चे पर ही पराली का प्रबंधन करना पड़ रहा है।

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पहले से काफी मामले घटे हैं

पंजाब में विगत साल के मुकाबले में इस वर्ष पराली जलाने के मामलों में गिरावट आई है। राज्य में अब तक 1764 जगहों पर पराली जलाने की घटनाएं सामने आ चुकी हैं। ये आंकड़े विगत 2 वर्षों में सबसे कम हैं। इसी समयावधि में अब तक 2021 में 4327 और 2022 में 3114 मामले दर्ज किए गए थे। अगर हम हरियाणा राज्य की बात करें तो इस सीजन में यहां पराली जलाने के 714 मामले सामने आ चुके हैं। हालांकि, विगत वर्ष की अपेक्षा में देखा जाए, तो विगत वर्ष अब तक 893 मामले सामने आए थे। यदि हरियाणा-पंजाब राज्यों की सरकार किसानों को पूरी तरह जागरूक करके उन्हें संसाधन मुहैय्या कराती है, तो पराली की चुनौती से छुटकारा मिल सकता है। बतादें, कि हरियाणा के कुछ शहरों का रिकॉर्ड किया गया AQI भयावह है। दरअसल, करनाल-243, रोहतक-182, जींद-155, फरीदाबाद-322, बहादुरगढ़-284, कैथल-269, कुरुक्षेत्र-256 और गुरुग्राम में 255 वायु गुणवत्ता सूचकाँक दर्ज किया गया।